पंचतंत्र की कहानियाँ : विष्णु शर्मा द्वारा हिंदी ऑडिओ बुक | Panchtantra Ki Kahaniyan : by Vishnu Sharma Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details | |
AudioBook Name | पंचतंत्र की कहानियाँ / Panchtantra Ki Kahaniyan |
Author | Vishnu Sharma |
Category | हिंदी ऑडियोबुक्स / Hindi Audiobooks, कहानी / Story, Kahani |
Language | हिंदी / Hindi |
Duration | 1:29 hrs |
Source | Youtube |
Panchtantra Ki Kahaniyan Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : पंचतंत्र को भारतीय सभ्यता, संस्कृति, आचार-विचार तथा परम्परा का विशिष्ट ग्रन्थ होने के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता है। यही वह ग्रन्थ है, जिसमें छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से अनेक धार्मिक, सामाजिक तथा राजनैतिक तथ्यों की इतनी सुन्दर और रोचक व्याख्या प्रस्तुत की गयी है, जैसी किसी अन्य ग्रन्थ में मिलना दुर्लभ है। पंचतंत्र मानव-जीवन में आने वाले सुख-दुःख, हर्ष-विषाद तथा उत्थान-पतन में विशिष्ट मार्गदर्शक सिद्ध हुआ है। इस पुस्तक का एक-एक पृष्ठ आपकी किसी-न-किसी समस्या के समाधान में अवश्य ही सहायक सिद्ध होगा। संस्कृत साहित्य का यह ग्रन्थ-रत्न कई हज़ार वर्षों से अपनी उपयोगिता और लोकप्रियता के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो चुका है। संस्कृत के इस गौरव-ग्रन्थ को हिन्दी के पाठ- को तक पहुंचाने के लिए इसे अत्यन्त सरल भाषा में प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा है कि हिन्दी के पाठक इसे पढ़कर लाभ उठायेंगे। पंचतंत्र संस्कृत भाषा का वह ग्रन्थ-रत्र है, जिसे पिछले लगभग दो हज़ार वर्षों से समूचे विश्व के असंख्य लोगों ने अपनी-अपनी भाषा में पढ़ा है और इससे लाभ उठाया है। केवल यही एक तथ्य इस ग्रन्थ की प्रामाणिकता, लोकप्रियता एवं विश्वसनीयता के महत्त्व को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। इस ग्रन्थ की रचना पंचतंत्र (अध्यायों) के रूप में हुई है, इसीलिए इसका नाम पंचतंत्र रखा गया है। इस ग्रन्थ के रचनाकार ने अपनी इस रचना का उद्देश्य निम्नतिखित शब्दों में व्यक्त किया है–
“कथाछलेन बालानां नीतिस्तदिह कथ्यते ।”
अर्थात् वह रोचक कथाओं के माध्यम से अबोध बालकों को राजनीति और लोक- व्यवहार की शिक्षा: षा देकर उन्हें इस विषय का पण्डित बनाना चाहते हैं। वह भली प्रकार जानते हैं कि मनुष्य को क़िस्से-कहानियों से अधिक रोचक और कुछ भी नहीं लगता। विशेषकर छोटे बालकों को तो कहानियां सुनने में इतना आनन्द आता है कि वे रात को अपनी दादी-नानी अथवा माता-पिता से बिना कोई कहानी सुने सो ही नहीं सकते। इसका कारण यह है कि बाल्यावस्था में जिज्ञासा अपनी चरमावस्था पर होती है और जिस कथा अथवा कहानी में जिज्ञासा अधिक होती है, उसमें रोचकता भी उतनी ही अधिक होती है। बालक सब कुछ यथाशीघ्र जान लेना चाहते हैं और इन कहानियों की लोकप्रियता उन्हें वह सब सिखा देती है, जिसका प्रभाव उनके सम्पूर्ण जीवन पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है। पड्चतन्त्र की कहानियां इतनी रोचक और प्रभावशाली हैं कि बच्चे तो क्या, इन्हें सुनने और पढ़ने के लिए बड़े-बूढ़े भी लालायित रहते हैं। यह ग्रन्थ पूरे विश्व में अपना उदाहरण आप ही है; क्योंकि केवल इसी ग्रन्थ में कहानी में से कहानी और फिर उस कहानी में से अन्य कहानी और फिर अन्य कहानी निकलती जाती है। आश्चर्य की बात तो यह है कि पूरे विश्व में बड़े-से-बड़े लेखक भी इसकी कहानियों का मुक़ाबला नहीं कर सके हैं। ज्ञान का जो भाण्डार महाभारत, रामायण, मनुस्मृति अथवा चाणक्य के अर्थशास्त्र-जैसे भारी-भरकम ग्रन्थों में मिलता है, उससे भी कहीं अधिक ज्ञान अत्यन्त सरल, सहज एवं बोधगम्य भाषा में पद्चतन्त्र में मिल जाता है। उन महाग्रन्थों को पढ़ने-सुनने- समझने के लिए दीर्घकाल की अपेक्षा होती है, जबकि पञ्ञतन्त्र की कहानियां सब कुछ चुटकी बजाते ही स्पष्ट कर देती हैं। समस्या कोई भी और कैसी भी क्यों न हो, पद्तन्तर में उसका समाधान अवश्य ही मिल जाता है। आज तो भारत सरकार ने भी प्जतन्त्र का अध्ययन करने की सलाह अपने बड़े- बड़े अधिकारियों को दी है, ताकि वे भी किसी कठिन समस्या को हल करने के लिए पदञ्जतन्त्र से सहायता ले सकें। ‘तनिक विचार कीजिये कि क्या कोई आधुनिक शिक्षक यह प्रतिज्ञा कर सकता है कि मैं मात्र छह महीनों की अवधि में ही मूर्ख बालकों को राजनीति-जैसे विषय का कुशल वेत्ता और व्यावहारिक ज्ञान में निपुण बना दूंगा और यदि न बना सका, तो अपना ‘कलंकित मुख दिखाने के लिए जीवित नहीं रहूंगा? जी हां, यह उद्घोष इस ग्रन्थ के रचयिता अस्सी वर्ष के बूढ़े आचार्य विष्णु शर्मा ने दक्षिण भारत में स्थित महिलारोप्य नामक नगर के राजा अमरसिंह की राज्यसभा में किया था और इसे सत्य सिद्ध कर दिखाया था। पदञ्ञतन्त्र राजनीतिशास्त्र के पूर्ववर्ती अनेक लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों की ज्ञात-अज्ञात रचनाओं के सार-तत्त्व का अनमोल संग्रह है, जिसका आधार अत्यधिक सुदृढ़ एवं पूर्णतः परिपुष्ट है तथा जिसकी विषय-सामग्री पूर्णतः प्रामाणिक एवं व्यावहारिक है। इससे ग्रन्थ की महत्ता एवं उपयोगिता स्वतः सिद्ध हो जाती है। संस्कृत भाषा के इस गौरव-ग्रन्थ पड्चतन्त्र को हिन्दीभाषी पाठकों तक पहुंचाने के लिए हम इसे अत्यन्त सरल एवं सुबोध भाषा में प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि हमारे ‘पाठक इसे पढ़कर लाभ उठायेंगे।
“अपने मित्र में मुझे अपनी एक और अस्मिता दिखाई देती है।” इसाबेल नॉर्टन
“In my friend, I find a second self.” Isabel Norton
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