मैन्स सर्च फॉर मीनिंग : विक्टर ई फ्रैंकल द्वारा हिंदी ऑडियोबुक | Man’s Search For Meaning : by Viktor E. Frankl Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details | |
AudioBook Name | मैन्स सर्च फॉर मीनिंग / Man's Search For Meaning |
Author | Viktor E. Frankl |
Category | हिंदी ऑडियोबुक्स / Hindi Audiobooks, प्रेरक / Motivational |
Language | हिंदी / Hindi |
Duration | 29:01 mins |
Source | Youtube |
Man’s Search For Meaning Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : विक्टर ई. फ्रैंकल की पुस्तक ‘मैन्स सर्च फॉर मीनिंग’ हमारे समय की महान पुस्तकों में से एक है। यदि किसी पुस्तक के अंदर किसी व्यक्ति के जीवन को बदलनेवाला सिर्फ एक विचार या एक पैराग्राफ भर हो, तब भी उसे बार-बार पढ़ा जाना चाहिए और उसे अपनी पुस्तकों की अलमारी में स्थान दिया जाना चाहिए। इस पुस्तक में ऐसे बहुत से अंश हैं, जो इंसानी जीवन को बदलने की क्षमता रखते हैं। सबसे पहले तो मैं यह बताना चाहूँगा कि यह पुस्तक इंसान के जन्मसिद्ध अधिकार (सरवाइवल) के बारे में है। स्वयं को सुरक्षित समझनेवाले अनेक जर्मन व पूर्वी यूरोपियन यहूदियों के साथ फ्रैंकल को भी नाज़ी यातना शिविरों में यातनाएँ सहनी पड़ीं। उनका वहाँ से जीवित वापिस आना भी किसी करिश्मे से कम नहीं था, जो कि बाइबिल के एक कथन ‘ए ब्रांड प्लक्ड फ्रॉम फायर’ की पुष्टि करता है। लेकिन इस पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन का बहुत विस्तार से वर्णन करने के बजाय, अपने दु:खों व कष्टों का विवरण देने के बजाय, उन सतों के बारे में बताया है, जिनके बल पर वे जीवित रहने में सफल हुए। पुस्तक में वे बार-बार नील्शे के शब्दों को दोहराते हैं, ‘जिस व्यक्ति के पास अपने जीवन के लिए एक ‘क्यों’ है, वह किसी भी तरह के ‘कैसे’ को सहन कर सकता है।’ वे बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से उन कैदियों के विषय में बताते हैं, जो अपने भविष्य की सारी उम्मीद खो चुके थे। ऐसे ही कैदियों ने सबसे पहले प्राण त्यागे। उन्होंने भोजन या दवाओं के अभाव में प्राण नहीं त्यागे, आशा का अभाव, जीवन में एक उद्देश्य का अभाव ही उनकी मृत्यु का कारण बना।
जब मैंने 1945 में यह पुस्तक लिखी थी, तब मेरे दिमाग में, इन दोनों में से एक भी बात नहीं थी। मैंने निरंतर नौ दिनों में यह काम इस संकल्प के साथ पूरा किया कि यह पुस्तक लेखक के नाम के बिना ही प्रकाशित होगी। दरअसल, मूल जर्मन संस्करण के पहले प्रकाशन के समय, पुस्तक के प्रारंभ में मेरा नाम नहीं था हालाँकि अंतिम क्षण में, मुझे अपने मित्रों के हठ के आगे हथियार डालने पड़े, जो यह चाहते थे कि कम से कम शीरषक पृष्ठ पर तो मेरा नाम जाना ही चाहिए। पहले-पहल, यह इसी संकल्प के साथ लिखी गई थी कि लेखक का नाम कहीं नहीं आएगा ताकि लेखक को कोई साहित्यिक श्रेय न मिल सके। मैं केवल अपने पाठकों को यह ठोस उदाहरण देना चाहता था कि किसी भी दशा में जीवन का एक निश्चित अर्थ होता है, भले ही वे हालात कितने भी दुःखदायी क्यों न हों। मैंने सोचा कि अगर मैं यातना शिविर में झेले गए हालातों के साथ अपनी बात रखूँ तो मेरे लिए अपनी बात को समझाना और भी सरल हो जाएगा। मुझे लगा कि मुझे उन लोगों से अपने जीवन के ऐसे दुःखद अनुभव बाँटने चाहिए, जो बहुत ही निराशाजनक अवस्था में अपना जीवन जी रहे हैं।
“जो छोटे मसलों में सच को गंभीरता से नहीं लेता, उस पर बड़े मसलों में भी भरोसा नहीं किया जा सकता।” अल्बर्ट आइंस्टीन
“Anyone who doesn’t take truth seriously in small matters cannot be trusted in large ones either.” Albert Einstein
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