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ब्राह्मण की बेटी : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा हिंदी ऑडियोबुक | Brahman Ki Beti : by Sharatchandra Chattopadhyay Hindi Audiobook

ब्राह्मण की बेटी : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा हिंदी ऑडियोबुक | Brahman Ki Beti : by Sharatchandra Chattopadhyay Hindi Audiobook
पुस्तक का विवरण / Book Details
AudioBook Name ब्राह्मण की बेटी / Brahman Ki Beti
Author
Category,
Language
Duration 2:53 hrs
Source Youtube

Brahman Ki Beti Hindi Audiobook का संक्षिप्त विवरण : समाज के उच्च वर्ग, विशेषतया ब्राह्मण समाज में नारी का कितना और किस तरह भावनात्मक शोषण किया जाता रहा है, इस के ज्वलंत उदाहरण हैं शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास ‘ब्राह्मण की बेटी’ तथा ‘पंडित जी’, जिन का एकत्र संग्रह है ‘ब्राह्मण की बेटी’- इन दोनों उपन्यासों में ऊंचनीच, छुआछूत, अमीरीगरीबी, बालविवाह आदि सामाजिक बुराइयों की शिकार नारियों की करुण कथाओं के माध्यम से नारी वेदना की गहन अभिव्यक्ति हुई। संभवतया इसीलिए उन्हें ‘नारी वेदना का पुरोहित’ कहा गया है।

महल्ला घूम कर रासमणि तीसरे पहर घर लौट रही थी. साथ में उस की दसबारह वर्ष की नातिन उस के आगेआगे चल रही थी. गांव के दूटेफूटे मार्ग पर इस तरफ बंधा हुआ बकरी का बच्चा उस तरफ पड़ा सो रहा था. सामने निगाह पड़ते ही दादी नातिन पर बिगड़ पड़ी, “अरी ओ छोकड़िया, रस्सी मत लांघ जाना! अरे लांघ गई? हरामजादी आसमान की तरफ मुंह उठा के चलती है? आंख से दिखता नहीं कि बकरी बंधी है!” नातिन ने कहा, “बकरी तो सो रही है, दादी.” “सो रही है. बस, अब कोई दोष थोड़े ही है! इस मंगल सनीचर के दिन तू खुशी से रस्सी लांघ गई है!” “इस से क्‍या होता है, दादी?” “क्या होता है! मुंहजली, बाम्हन ( ब्राह्मण) के घर की नौदस साल की धींगरी ( हृष्टपुष्ट ) लड़की हो गई और इतना भी नहीं सीखा कि बकरी की रस्सी नहीं लांघनी चाहिए, किसी तरह नहीं. और फिर कहती है, क्‍या होता है! इन मुओं के बकरी पालने के मारे तो लोगों का राह चलना मुश्किल हो गया है! ऐं, मंगल के दिन लड़की रस्सी लांघ गई, क्‍यों? किस लिए बीच सड़क पर बकरी बांधी गई? मैं पूछती हूं उन के घर क्‍या लड़केलड्कियां नहीं हैं? उन का क्‍या कुछ भलाबुरा नहीं हो सकता?”

अचानक उस की दृष्टि पड़ गई एक बारहतेरह साल की दूले ( निम्न जाति ) की लड़की पर. वह घबराई हुई अपनी बकरी के बच्चे को हटाने आ रही थी. उसे देखते ही बुढ़िया अनुपस्थित को छोड़ कर उपस्थित पर दूट पड़ी. तीखे स्वर में बोली, “तू कौन है री? तू चलती कैसे है, देह से सटी ही जाती है! आंख कान से कुछ सूझता नहीं तुझे? लड़की से अपना आंचल तो नहीं छुआ दिया?” एक साथ डांट भरे इतने सवाल सुन कर दूले की लड़की सिटपिटा कर बोली, “नहीं दादीजी, मैं तो इधर से जा रही हूं.”

रासमणि ने मुंह बनाते हुए कहा, “इधर से जा रही हूं! तुझे इधर से जाने की जरूरत? बकरी तेरी ही मालूम होती है. मैं पूछती हूं, तू किस जात की लड़की
कार “हम लोग दूले हैं, माताजी.” “दूले? ऐं! इतनी अबेर ( देर ) में तू लड़की को छू कर नहलवाएगी?” नातिन बोल उठी, “मुझे तो उस ने नहीं छुआ, दादी.” रासमणि ने डांट लगाई , “तू चुप रह मुंहजली! मैं ने खुद देखा, इस छोकरी के आंचल का छोर तुझ से छुआ सा मालूम हुआ. जा, तालाब में डुबकी लगा कर मर, जा! नहा ले, तब घर में घुसना. नहीं, अब तो जातजनम रखना मुश्किल हो गया! नीच जात की बढ़त हो रही है, देवता बाम्हन को अब कोई पूछता ही नहीं.
हरामजादी , दूलों के महल्ले से यहां आई है बकरी बांधने, क्‍यों?” डूले की लड़की के भय और लज्जा की सीमा न रही. वह बकरी के बच्चे को छाती से लगा कर सिर्फ इतना ही बोली, “दादीजी, मैं ने नहीं छुआ.” “छुआ नहीं, तो इस महल्ले में आई क्‍यों मरने?” लड़की ने हाथ उठा कर पास ही के किसी एक अदृश्य घर की ओर इशारा कर के कहा, “महाराज जी ने अपनी इस गली के पीछे हम लोगों को रहने की जगह दी है. मां को और मुझे नानी ने घर से निकाल दिया है न, इसी से.” किसी की अथवा किसी भी कारण से हुई दुर्गत के इतिहास से रासमणि का क्ुद्ध हृदय कुछ खुश हुआ और इस रुचिकर संवाद को विस्तार से जानने के लिए कुतृहल से उस ने पूछा, “अच्छा? तो कब निकाल दिया?” “परसों रात को, दादीजी.” “अच्छा तो तू एककौड़ी दूले की लड़की है! तो कहती क्‍यों नहीं? एककौड़ी के मरने के साथ ही बूढ़े ने सब को निकाल बाहर किया. छोटी जात के मुंह में आग. उस ने निकाल दिया तो कया अब तुम लोग बाम्हनों के महल्ले में आ कर रहोगी? तुम लोगों का दिमाग तो कम नहीं! कौन लाया तेरी मां को? रामतनु का दामाद लाया होगा? नहीं तो और किस में ऐसी विद्या है! घरजमाई है तो घरजमाई की तरह रहे; ससुर का धन मिल गया है सो अब क्‍या महल्ले में भंगी, चमार, डोम, दूले ला कर बसाएगा?” यह कहते हुए रासमणि ने आवाज दी, “संध्या, ओ संध्या, घर में है री?” परती पड़ी हुई जमीन के उस तरफ रामतनु बनर्जी की खिड़की है. आवाज सुन कर पास की खिड़की खोल कर एक उन्‍्नीसबीस बरस की सुंदर लड़की ने मुंह निकाल कर जवाब दिया, “कौन बुला रहा है? अरे, ये तो नानी हैं. क्यों, क्या बात है?” कहती हुई बह बाहर निकल आई. रासमणि ने कहा, “तेरे बाप की अकल कैसी हो गई है, बेटी? तेरे नाना रामतनु बाबू एक नामी कुलीन थे, उन्हीं के मकान में आज बसने लगे बाग्दी दूले!
कैसी घिरना ( घृणा ) की बात है बेटी !”

“अपने मित्र में मुझे अपनी एक और अस्मिता दिखाई देती है।” ‐ इसाबेल नॉर्टन
“In my friend, I find a second self.” ‐ Isabel Norton

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